पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५८६

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चन कार हूक अचूक रमे हो, प्रियतम, तुम मेरे जीवन में, ना जाने किस दूर देश से, झाँको हो मन - वातायन में। ओ मेरे निमोहो, आओ मेरे इस सूने सावन मे, भूल गये क्या ? नभ - धाराएं तुम बिन मुझको नहीं सुहाती, अह-निधि तिल कर जलती है मेर स्मरण दोप की बाती। तुम क्या गये कि इस जोवन को सत्य प्रेरणा लुप्त हुई है, तुम क्या गये कि इस जीयन की मधुर भावना सुप्त हुई है, तुम क्या गये कि मेरी कविता आज बन गयो छुई-मुई है, तुम क्या गये कि इस जोवन मे रहा न कोई सहज संगाती, तुम दिन तिल तिल कर जलतो है, मेरे स्मरण दीप की पाती। अपनी पत्थर की आखो से मैन सब कुछ देखा है, प्रिय, महाप्रयाण - यान पर उन्मन तुमको नढते देखा है, प्रिय, है कितनी कठोर ये बातें इसका क्या कुछ लेखा है, प्रिय' तुम्ह अग्नि - अपण परके भी फटो नहीं यह निष्ठुर छाती । तुम विन तिल - तिल कर जलती है मेरे स्मरण-दीप को याती। यो गणेश मृटोर, काापुर १२ जुलाई १९४६ इस विषपाया जनमक