पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५८९

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आगर इरा सन्च्या फो कर दो सिन्दूर - दान, मम अचल - ओट दीप वन विहंसो, अहो प्राण, ग्रहण करो आर मम सन्ध्या - यन्दन, सुजान, हरण बगे युग युग का मेग यह हिय-तम तुम, मेरे मन्ध्या-गय मै विहस उठो, 1 प्रियतम तुम दिन तो छोटा निक्ला, बीत गया वह यो हो, वह यैसे बीता ? यस, वीता है ज्यो-यो ही, पर अब कुछ चेत हुआ, सन्ध्या आथी ज्यो हो, करोगे न निशि-निवाह क्या मेरे सक्षम, तुम आओ इस सन्ध्या में मुसकाते, प्रियतम, तुम ! 7 देखो, वह एकाको सूना अश्वत्य विटप. शान्त हुआ, जो दिन में हहराता था कॅप-कैप, हूँ मै भी वैसा हो जैसा वह 'जड पादप, मुझे सुगति दान करो, ओ मेरे अनुपम, तुम, अमिता स्मिति छिटकाओ,मम मग मे,प्रियतम,तुम 1 खग-अलरव नि स्वन है, नीरच है तरु ममर, व्योम मौन, वायु शान्त,थकित सरित, सर, निझर, बैठ चली गोधूली, मूक हो रहे मम स्वर, ऐसे क्षण मुरलो मे पूको स्वर पचम तुम, गैरे नौरव हिम मे स्वर भर दो, प्रियतम, तुम केन्द्रीय कारागार, बरेली २८ नवम्बर १९४३, रात्रि I ५५१ हम विषपाया जनम दे