पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५९२

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पन्य पक मय सही, किन्तु मत आने में अलसाओ, जरा देर को तो आधार, मम शून्य सदन हुलसाओ। यदि आ जाओ तो मिट जाये, खटका अब-तन का। प्रिय, लो डूब चुका है सूरज, न जाने कब का । श्री गणश युटीर, पानपुर २९ जून १९९९ प्रो मेरे मधुराधर चिटषी ये चेले की कलियाँ, ओ मधुराधर, छिटकी हो मानो तब मन्द-मन्द स्मिति मनहर। मुकुलित हो गया अमित जीवन-उलग-हाम, वृन्तो पर थिरक उठा, भव लेतन या विलाय, पारियो मे सपदित नवल जागरण-विकास, अलिंगण पी गुन-गुन में गूंजे है नव नव स्वर, ओ मेरे मधुरापर। करता नाव उटा मधु समीर, करतो आयो है विहम भीर उमा गगन चौर, र म बाल अरण-विरमा रहर, ओ मेरे मघुराधर। 114 २५१