पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५९४

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पन्य पप मम सही, किन्तु मत आने में भलसाओ, जरा देर को तो आकर, मम शून्य सदन हुलसाओ । यदि आ जाओ तो मिट जाये, खटका अब-तब का प्रिय, लो डूब चुका है सूरज, न जाने कब का घी गणेश कुटीर, नानपुर २९ जून १९३९ ओ मेरे मधुराधर चिटकी ये बेले को कलियाँ, ओ मधुराधर, छिटयो हो मानो तन मन्द-मन्द स्मिति मनहर । मुकुलित हो गया अमित जीवन-उरलारा-हास, वृन्तो पर थिरक उठा, नव चेतन का विकास, पांसुरियो मे सदित नवल जागरण-विकास, अलिगण को गुन-गुन मे गूंज है नथ नव स्वर, ओ मेरे मधुराधर सर-सर-सर-रार फरता नाच उठा मधु समीर, फर-फर फर फर करती आयी है बिग-भौर जीवन या जय-निनाद उमडा है गगन चोर, लहर उठी नम सर में बाल अरुण किरण लहर, ओ मेरे मधुराधर। हम विपाथी जनमक