पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५९५

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जग मे है ज्योति-हास, जट में चेतन प्रकाश, तृण तृण मे सुरस-रास, चिन्मय है महाकाश, तव हिय क्यो हो उदास' मानब क्यो हो निराश उपल-हृदय में भी लहर रहा निझर, ओ मेरे मधुराधर। निरस-निरख कलियो को मादक मुसकान अमल- बलि जाऊँ । आयो है तब स्मिति की स्मृति विह्वल । मन मन-सर में विकसित है तब युग नयन-कमल, परिमल मिस आयो तब तन-सुवास सिहर-सिहर ओ मेरे मघुराधर। केद्रीय कारागार, परेली १मई १९४४ उमगे सावन के धाराघर रिमझिम-रिमझिम, उमंगे सावन भरर-झारर भर में घाराधर ये धन, प्याम, श्वेत, धूमिल-से, ज्योति विरण विम्बित शिल मिल-से, नवररा पीन, अदीन, गगनचर, उमंगे साधन धाराधर 1 ५४९ इम जनमय