पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हिय मे मोदामिनी दुराये लरज गरजते ये घिर आये, वाम्पित करते थल-थल थर-थर उमगे सावन के धारावर । अठखेलियां गगन में करते, प्रतिपल नव आकृतियाँ धरते, ये बिगडे, क्षण-क्षण बन-बनकार, उमगे सावन के धाराघर 1 नीर भरे थे, आग भरे ये, हिये बिज्जु-अनुराग भरे ये, ये शिव-शकर ये प्रलयकर, उमगे सावन के धाराधर। द्रुम-शासाओ पर, पों पर, गिरि-शृगो पर, गिरि-वरणो पर, दरखाते मिज जीयन निक्षर, उमगे सावन के धाराधर। उमड चलो नदियो आतुर-सी, हरी हुई गेविनी निहुर-सी, जड में लहरा जीवन हिय-हर, उमंगे सावन के घारापर 3 w -- हम विपपायी जनमक ५५