पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५९७

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भीर लगी नभ के भागन मे, पीर जगो मेरे तन-मन में, वही वयार-उसांस हर हर, उमंगे सावन के धाराघर। मेरे प्रिय, मेरे मन भावन, तुम बिन है सूना यह सावन, सूनी निशा, शूय मम वासर, उमगे सावन के धाराधर । केन्द्रीय कारागार, बरेली ५ अगस्त १९४४ केन्द्र-विन्दु मेरी मनुहार, मेरा प्यार, मेरी नेह-रार, मेरे ये स्वर सिंगार, मेरे स्वप्निल विचार सब के तुम्ही हो केन्द्र, तुम तक ही जातो है उस उसपर मेरी गीतावलि को पुसार, मेरे नयनाभिराम, मेरी दृग-पूतरी मे रहती है अपित तुम्हारी शारी छविसार, गुजन किया ही मारते है मम श्रवणा म तब मजु अगुलि सश्त मेरे तार तार । UE इम रिपपाया जनमक