पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५९८

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सिहरे तुम्हारे गात, मेरी स्मृति मे सुजान, आकर यो कहती है रस-भीनी-सी बयार, कज-लोचनो मे छाये आंसुओ के मुरता-कण, यो कहते है ये सत्र ओम विन्दु बार-बार, अम्बर से कहते है गरज घनेरे धन, हुआ हैं असा, तुम्हे अमित विछोह-भार, मेरे हिय मे है आज कितनी पती-सी पीडा, इसको क्या जाने मेरा यह अज्ञ कारागार। फिर भी कभी तो यह बरखा पधारेमी औ' फिर भी कभी तो होगी पडतुओ को रार, कभी विछोह का निशान्त यह होगा, प्राण, कभी तो अवश्य होगा इस तम का सहार, कम्पित करो से तब तुम्हारी बलाये लेगी, तब छवि-रत यह मेरी हिय-मनुहार, उस दिन आरती उतारेगा तुम्हारी, प्रिय, ध्यान-मग्न, चरण स्मरण लग्न मेरा प्यार 1 आज तो मैसा लेके आया है कठोर कम, चाहता है, तोडो निज वीणा, अहो वीण कार। मत हो, प्रमादी, मत बनो आज रावादी, चनो गन गण-वादी, अविवादी अविकार । जोवन की सगिनियो रग-रेलिया है, किन्तु, आज ऐतिहासिकता आयो है तुम्हारे द्वार, विप्लयो क्षणो में, बन्धु, केसी यह हिम हार' कोसी मनुहार केसी स्नेह-रार? क्या दुलार? बरेली २४ अगम्त १९४४ द्रीय कारागार, हा विषयापी जनमक ५५९