पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

क्या बतलायें रोने वाले? क्यो ढरके है दृग से जल-प्राण, बतलाओ, ओ रोने वाले। किसकी सुध आयो है, वोलो, ओ निज वदन भिगोने वाले। क्या बतलाये अपने हिय की, तुमको, अजी पूछने वाले ? कैसे दिखलाये हम तुमको अपने अन्तस्तल को छाले ? मे अनी सतत यदि खटके, तो न वहे क्यो नयन-पनाले। परिभाषा क्या दै निज दुख की अपना सब कुछ खोने वाले। क्यो डरते हैं दृग से जल कण, क्या बतलायें गेने वाले ? वे कुजें, जिनके किमलप-दल धीरे-से सर करते थे, कुछ रहस्य-रस को वातो से निभृत दौथियो को भरते थे, वे कुजें, जिनमें अलसाये सुमन विहंसकर नित सरते थे, उन सबके सस्गरण अतिथि बन, आये हैं बिन बोले चाले लोचन कण क्यो दरक रहे हैं, क्या बतलायें रोने वाले। जिन कुजो की धन छाया में छुप रहती थी प्रखर दुपहरी, जहा शुरमुटो मे रहती थी मीलित-नयना निद्रा गहरी, जिनके ना में यहती थी नित प्रेम-गगन गगा की लहरी गत की इन मादक स्मृतियों को कोई, केरो, नाहो, संभाले? क्यो ढरके हैं दृग से जल कण, क्या बतलायें रोने वाले । उन्ही सघन कुलो में हमको प्रियतम ने रसदान दिया था, उन्ही सपन कुमो में उनने हमको अपना मान लिया था, अब ये ही उजडी हैं, जिनमे हमने गधु रस पान त्रिमा था, किमि रोक आ ही जाती है स्मृतियाँ अंधियाले-उजियाले । लोचन-वण क्यो दरक रहे हैं, नया तलायें रोने वाले। दीय पारागार, बरेली ११ जून, १९४ ५६. बम विषपामी जनम