पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नाद-निरत, अति ध्वनित गगन-मन, अवनि मृदग-धोर सुन उन्मन, हरित भरित नित चिन्मय चेतन, सिहर-सिहर हरपे मृण्मय झर-झर-झर बरसे करणा-पन, सर-सर-सर सिहरे तृण-तरु तन । कण, सन-मन-मनन समीरण-रिगण, शीगुर-झाकृति किंकिणि-सिंजन, कारवन-उपवन-राजि प्रमन्धन, हर-हर-हहर-प्रभजन, झर-झर-झर बरसे करुणा-घन, सर-सर-सर सिहरे तुण-तरु-तन । तरणि-ज्वालमय घरणि-काल-क्षण शान्त, तृप्त पाकर धन-तपण, ले अम्बर का अन्य-समपण- धर-थर-थर घसुधा-हिम आगण कम्पित भू-भागण, झर-झर-झर बरसे करणा-धन, रार-सर-सर सिहरे तृण-तरु-तन । श्री गणेश कुटीर, कानपुर ७ जुलाई १९५५, रात्रि २५५ हम विषपामी जनम के ३०