पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६०५

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तुम मेरो आँखों की पुतली तुम तो मेरी आखो की पुतली तुम मेरे हिय का चिर कम्पन, मम चेतनता का तुम स्पन्दन तुम इन प्राणो का मदिर व्यजन, तुम मम जीवन अमर साध, मेरे सपनो का मूत रूप, आराधना केन्द्र तुम हो, तुम मेरौ ममता चिर अनूप, तुम अपरिमेय, तुम अनुपमेय, तुम मम निशि के पाशि भासमान, तुम मम जपा की अरुण छटा, मेरे बिहान की मधुर तान । मम मेरे वियोग को यह निशीथ, जिसका अम्बर था अनवलम्ब, जिराम लहराया तिमिर स्प- पन विप्रलम्भ या उपालम्भ, शशि किरणो से, तारागण से, था शूय गगन मेरा नितान्त, ना सोचा था कि कभी होगा मेरे विछोहा भी निशान? नभ मे की मुसत्रायगी, डिटकेगा जीयन मे विहान, पव मोचा था, तुम गाओगे- इस नवल मिसन वे मदिर गान' हम विपपाया जाम