पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६१२

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मैं तुमसे कुछ नहीं मांगता, तुम गम आराधना भुला दो, मेरी श्वासोच्छ्वास-उष्णता भरी हुई याचना भुला दो, डाल विस्मरण के पलने मे उस सस्कृति को रच भुला दो, विस्मृति के विहाग के स्वर में लोरी गाकर उसे सुला दो, क्षमा करो, यदि कमी जैचा हूँ मैं तुमको अल्पज्ञ भिखारी, मैं याचक सा दीख पर हूँ, पयपि में दानी, व्रतधारी । यो गपेश कुटीर, मानपुर २९ अप्रल १९४८ ओ हिरनी की आँखों वाली। उस दिन चला आ रहा था में, अपने ढोर किये जगल से, ड्व चला था सूरज, मुझको तपा नचाकर अपने बल से, उडे जा रहे थे सब कौवे, सोले, करने रैन बसेरा चह-पह फरता चला जा रहा था इक दिगिविडियो का घेरा, आसमान मे फैल चुकी थी सुघड सांज किरनो की लाली उसी समय दिखलाई दो तू, ओ हिरनी की आँखो बाली ? पट्ट घरे अपने बाधे पर औ' हमारता अपनी गायें, बढा आ रहा था, लेकिन तू देख रही थी ये लीलाएं, मैने देखा, खडी मड पर, खुरपी लिये हाथ म, कोई - द्वापर की राधा रानी-सी, चिते रहो है खोयी-सोयी, देख रही थी क्या तू गायें, भोलो, घूमर, काजर बाली' या ग्वाले को देख रही थी, ओ हिरनी की आरत्रो वाली। हम विषपाया जनमक ४७३