पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६१३

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सुरपी हाथ, डहहहे लोचन, वह मटमैला चौर हा-सा, कुछ गम्भीर और बुछ चचल, वह मुखमण्डल पीर भरा-सा, यह कीमाय-स्वाप सलौना, आया आँखो के आगे जब, तब खिचाव इक हुमा हृदय में औ' लोचन भर माये डब-डन बिन जड गया हिप-चौखट में चित्राधार नहीं अब खाली, समा गयी तू मन, प्राणो मे, ओ हिरनी की आँखो वाली । दिन में गायो की बाजरारी भोली आँखे देख-देख कर, याद कर लिया करता हूँ मै, सुन्दर तेरी आंख मनहर, तु जाती है खेत निराने, मैं जाता हूँ ढोर चराने, दिन-भर गाया करता हूँ मैं तेरे हो गुन-गान तराने, देखा करता हूँ चिडियो को जोडी बैठी डाली डालो, पर, मै तो हूं निपट अकेला, ओ हिरनी की आखो वाली । 2 बादल उमडे, निजली तडपे, धन-गरजन से जियरा लरजे, पूर लोग खाम कर जव-तव, लोक लाज भी रह-रह गरजे, तू खेतो मे, मै जगल मे, फिर भी कसा अजब तमाशा । लोगो ने ना जाने कैसे पढ़ ली है नैनो की भाषा तू ने छुपके देखा, मैंने भी निगाह चुपके-से डाली, फिर भी फैल गयी सब बाते, भो हिग्नी की आखो वाली । श्री गणेश कुटीर कानपुर १८ समस्त १९४० ५०१ बम विष्पायर जनम