पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६१५

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प्राण, आज फिर आया है गारवत टोह - भार सिर पर, ओर उमड आयी है बरुणा दशो दिशाभी से घिर नार, तुम समय हो, यदि चाहो तो पर-पार कहानी को- कह कानो मे, कर सकते ही प्रथा दूर, ओ मम हिप-हर । मा तुम मैं तो आज करण स्मृतियो का टोस भरा इक पुज पना- मोह - मुग्न - सा विनर रहा हूँ, देख रहा हूँ तब सपना, मेरे अतरवासी, रितनी दूर पधारे हो? धक जामांगे, लौटो, कोमल, मत छोडो यह गृह अपना! थो गनेश टोर, मानपुर ११ना १९८५ क्षण, सप मद अनसिन-गी जन्न को स्मृति हो य रहेगी मन में एर यही अवगम्य रहेगड, प्रियतम, इस सूने जीवन में। जिनको ट्र पाता हुँ मेयल स्मृतियों को पाना मे, जोलि ओनर, मेरी हन गौरी ओमागे,- वे जिनमे अवेषण को पूर्ण इतिश्री अहित की, येशग, जिनम दग्ग-गम्ग की नगण्टा एमष अमित थी, ये 7, पात्र बने है येपर हलिा रोम-रोग पम रान में, ये 7, अपरोमि जोवन के दिगमप म PLEAT १६जनी दम राम