पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६१६

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हम परित्याग के आदी हैं जिराको तन-मन से प्यार किया, जिसका दिग-रात दुलार किया, जिस पर सवस्य निसार क्यिा, जिस पर प्राणो को वार दिया, जिसकी इक मादक नितवन में देखे लाखो सपने हमने, जिसके चरणो मे सुकने को सुध-बुध खोयी हिय - मयम ने, जब अपना यही हृदय ईश्वर जोरन भर अपना यह न सका, तब विससे नेह लगायें अब, जब प्राण पके औ' हृदय थका? हमने अपना मुरक्षाया-सा जो पुष्प पाम था, चढा दिया, उनने कुछ सोच-विचार किया, वे सिझके, पर, फिर उठा लिया, नत लोचन हमने विनतो को यह नोरस सुमन विचारा है, मुरक्षाया भी है, पर, मालिक, इसमे क्या दोष हमारा है? हम लिये अजली मे इराको ये टूढ रहे तुमको निशि- दिन, वरयो पर बरसे बीत गयी, दिन बीत गये अब तक तुम विन । नहा - सा यह सुकुमार युसुम, नन्ही-सी इसवी पखडियो, पया बतलाये इसने अब तक देखी कैमी-कैसी पटिया कितनी बरसातें होली हैं, इसने झेले कितने पतझर कितनी गर्मी, पितनी सर्दी है बीत चुको इसके हिय पर । जब यह पहले ही पहल खिला उस दिन ही यदि तुम मिल जाते तो इसे न यो युम्हलाया - मा, यो मुरझाया - सर तुम पाते । हम विषपाया जनमक ७३ ५४७