पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६१९

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प्रिय, मैं आज मरी झारी-सी प्रिय, मै आज भरी शारी-सी, ललक - ठुलुंगी श्री चरणो मे निज तन-मन वारी-सी, साजन, आज भरी झारी सो। प्राणापण अपित करने केचन - काया, मैं आयी हूँ लख तम - छाया, में नहीं सुहाती, जग उजियाले की वह माया, थान अचरे में खिल डोली हिय कलिका न्यारी सी, प्रिम, मै आज भरी शारी-सी। यह सम का परदा रहने दो, मेरा 'अ' यहा बहने दो, इस अॅधियारे मे ही मुझको, आत्म-विसजन सुख सहने दो, ओ मेरे प्रकाश, आओ ओढे चादर कारी सो, प्रिय, मैं आज भरी झारी-सी । मत पूछो मग ग्राम कहा है, पता नही निज धाम कहा है, अपनापन तो एप्त हो रहा, मेरा निज का नाम रहा है अब तो तुम हो, और तमिमा है यह मंधियारी-सी, प्रिय, मैं आज भरो मारो सो। हम विपपाया जनम क ?