पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६२६

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कवि जी, कवि जी, तुम क्मो गुमसुम हो क्या मुरशी है तब हिय - कलिका? कवि जी बोले आज हृदय में जाम उठी है उत्कलिका। पया समझे? उत्कलिका । भाई, जागी है 11 औ' विब्योक भाव जागा है, कुतक - अनुरागी है हमसे नम न करो दयाकर । यो तुम धर्म न पाओगे, हम रल्लक - आवृत बैठे हैं, नग हा उल्कलिका गया तुम महाओगे पोन। भाई पपा न निभाओगे तुम हमसे अपना साप्तपदीन आज, हमारे अन्तरतर में जागो, परिस्पन्द - रति पया समझ माहा, भाई, क्या तुम्हे न रच शब्द का ज्ञान परिस्पन्द है सुग्गुम्फन - विधि । क्या समझे? न मिटा अज्ञान? हम पिपाया जनम के MES