पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जाग हो, तो आज हमारे हिंम म परिस्पद - रति उठी, और हमारी हिर अभिसापा बरग-प्रिया • रस पाग - उठी। वह गम्पस प्रिया को प्रतिमा । बह मुमभ्रष्टक उना लोला सुदर उनका ललित र लामयः । गनहर चेकक्षिणा करलोल। वह घनसार यक्ष कदममय भावित उनकी अग - थी, इन सबकी स्मृति जाग उठे तो कैसे धारे हम हिय हो' भाई, अक्षर - चतु, नया न तुम समदो हिंग की गहन - व्यथा ? तो हम फिर ये समक्षावे तुगको अपनी प्रेम - माथा लसो हमारा देखो यह उपबह हमारा यह उपधान। लखो हमारे नयन - समुद्गक, लखो विलन पत्यक-विधान ।। किसी समय हम थे उरीकृत। संगीण, विदिता और, हमारी प्रिया हमारे द्वारा यी ईलित, ईडित ।। दम विधायी सनमक