पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

क्या समझे? भाई बस समझो कि है आज हम अत्युत्सृष्ट अहाँ समुग्धिात, धूत, विश्रुत हम निपट अन् वसित और अहष्ट । 1 पोगा। यया समझे। बोलो भाई, क्या तुम हो पूरै चौगा? इतना समझाया, पर तुम तो निकले बस पूरे देखो, आज - विरह - नद में है पडा हुआ जीवन -डीगा। कर हमारी मदद जरा तुम, तुम हो जदपि पौधा डोगा, पौगा, योगा, भी खूब मिली, मानो, हम कावीश के हिय मे कविता को काकली सुद्ध घोषा। इनको तुक खिली। केन्द्रीय कारागार, बरेली १२ जनवरी १९४४ हन विषपाया जनमक ५