पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६३९

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गभीर भेद का भरम 1 मुरला अजान दे चुका, हुई नमाज भी रातम | तथापि गुल नही सका, गभीर भेव का भरम, सवेरे में अभी तलक भटवते शाम हो गयी, नहीं मिला रहस्य पुल, किये सभी धरम करम, य' सधि दिल की दिल ही रही कि कोई तो कभी- य महता चाहते हो क्या बताओ, बेहि त्वा वर नही समझ सके हैं हम कि मन्शा क्या है उनका जो- रगो में दौडता है यह रुधिर सदा गरम - गरम । फिजूल चेतना है गर सत्रेत भी अचेतवत् भ्रमित - अमित हुआ करे विला या शिला शरम! निकल के जगलो मे हम वसा चुके नगर-शहर, मगर न तोप ही मिलान शान्ति ही मिलो चरम । हमी ने होलिया यहाँ लगा रखी हैं सत्र तरफ, हमी तो कर रहे है ये सभी शहर - नगर भसम । इसी तरह क्या हम कभी पहुंच सकेंगे उस तरफा जहां से है करीबतर विवेक - ज्ञान • पद - परम? श्री गणेश गुटोर वानपुर २७ गम्त १९३९ (ue हम विपपा गनमक