पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६४१

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प्यार वना मेरा अभिशाप हैं मेरे तो पाप अमाप, चिर सुन्दर वरदान प्यार था, उलट बना मेरा अभिशाप, हैं तो मेरे पाप अमाप । अरे किसी ने भी तो अपना समझ न पडा मेरा हाथ, कोई कभी हुआ यदि मेरा, उसने भी तो छोटा साथ, क्या कोई होगा ऐसा भी जो जीवन भर रहे अनाथ ? मैं हूँ, ओ जग, मै हूँ। कर तो तू मेरे अभाग्य की नाप है मेरे तो पाप अमाप ? 1 अब तक चिरलाया मै लो, यह साश हुई पर मिला न मीत, पर अब तो जीवन सध्या भी होने लगी व्यतीत अतीत, उमड धुमष्ट ला रहा निशा का कज्जल करने मुझे सभीत, अब आयेगा कौन इधर को? किसकी आयेगी पग-चाप मेरे तो हैं पाप अमाप ? यहा तुम्ही ने थान, प्राण-धन, नि तुम हुए मेरे हिय-राज' तन, अब क्या लग रही तुम्हे है मेरे पहलाने में लाज' मांग मिदूर भरे ई क्या आजीवन यन्दी के वाज' सा है, प्रिय, मेरे होकर तुम पपा नित परते रहो विलाप ? मेरे ती पाप अमाप 1 १.२ हम पिपायानगर