पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६४२

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आज सोचता हूँ, त्रिय, तुम बिग कैसे होगा जीवन पार? कैसे वहन कर सकेगा हिय यह इतना दूभर सम्भार अच्छा हो, पदि सिमिट सान्त ही, यह अपार जीवन-विस्तार, पर, प्रियतम, यह तो है केवल इक आकुल का विषाल अलाप, है मेरे तो पाप अमाप मुझे याद है जर तुमने इस वक्षस्थल पर शिर रख प्राण, कहा था कि "तुम तो मेरे हो, ओ मम कुकूग के मम्मान ।" उम दिन मुझे हुआ या अपनी जीवन-साथकता का भान, उस दिन मै अद्वैत हुआ था, अब, फिर लगी द्विधा की छाप ! हैं मेरे तो पाप अमाप । भुला सका हूँ नहीं अब तलक वह क्षण, यह तन्मय मुसकान, वह सन्ध्या, वह रात मनोहर, वह थकान, वह अमल विहान, मनसर में उठ ही आते हैं बुाद, स्मरण दारण-रस पान, हिय में सदा भरा ही रहता है, प्रज्वलित छोह सन्ताप, प्यार बना मेरा अभिशाप । डिस्ट्रिक्ट जेल, स्मार १८ माच १९४६ तुम हो गये पराये तुम हो गये पराये, साजन, तुम हो गये पराये, पार समाचार, आखो ने मुजता - कण बरसाये, साजन तुम हो गये पराये। हा पियफाया जनम के १०३