पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६४३

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जिसके अब हो गये, उसी के बने रहो भनमोहन, होने दी मेरी श्वासो था आरोहण - अवरोहण, जन्म - जन्म का अभ्यासी हूँ में आहे भरने था, तुम न कगे कुछ सोच तनिफ इन आंसी के झरने का, हहराने दो हिम यह मेरा यदि अब यह हहराये, साजन, तुम हो गये पराय। तुम बहत हो रहे कि अलि ने अबर पम कब चूमे। पर, उसके मृदु अधर तुम्हारे अधरो पर है झूमे, आलिंगन का तव भुग लतिका बनी माल अलबेली,- फिसी ग्रीव में पड़ वन मायी मेरे लिए पहेली, नहीं सुलझाती यह प्रहेलिका योटिक जतन कराये, साजन, तुम हो गये पराये। इक सम्भ्रम था, इक सपना था, झिलमिल आशा थी, स्नेह भविज्ञ की मूर्तिगती जो मेरी परिभाषा थी, मेरे मृदुल, खून तुम मुद्दाको भाज होदा में लाये, खूब मिटाये तुमने मेरे सपने वने - बनाये, क्या दुराव ? मुझसे ग टुरेगा यह नव नेह दुराये' साजन, तुम हो गये पराये । 1 मा- चवीर कल्पना गगन में टूटेगा अा किसो ? अब यया यह निज प्राण चद्रमा मानेगा जिस तिरा कोर अभिनय मेध - खण्ड से घिर जब मेरा बन्दा हुलसे, मन • चोर तब रिसे निहारे निज दृग स्नेहाकुल से' नयो न तिमिर - सागर मे पछी डूबे औ' उतराये? साजन, अब हो गये पराये। दम विधवाया नमः