पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विसर गयो क्षण - भर में ही, प्रिय, तुम्हे पुरानी बाते तुम्ह खोजते काटी मैने अयुत मुगो को रातें, जब तुम मिले, लगा यो मानो जागे भरम अभागे, मानो चिर अन्वेपण प्रतिफल आया मेरे आगे, पर, मेरे अभिशाप घूम-फिरकर फिर मग घर आये। माजन, तुम हो गये पराये। रेल पण फपद से रानपुर ३१ जनवरी १९४३ विचलित विश्वास मनुजता म आज विचलित हो रहा विश्वास मेरा, आज तो गर-सा रहा है हृदय का उल्लास मेरा, है चलित विश्वास मेरा। एक निष्ठा डिग चुकी है अाज तो मेरे सजन को, भेट अस्वीकृत हुई है मम चिरन्तम हिय लगन को, में पुरातन हो गया हूँ, मैं न नित्य नवीन हूँ अर, फोन दे निज नेह मुझको, दीन में सन डोन हूँ जर' आज मम मन गह उठा है व्यथ है उच्छ्वात तेरा। चलित है विश्वास मेरा । हम पिपपायी जनमक १०५