पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६४६

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आज कोई और आया है तुम्हे निज अध्य देने, और तुम भी तो बढे हो, हँस विहस, वे सुमन लेने, देखता हूँ यह तुम्हारा गहण औ' यह दान उसका, देखता हूँ दूर हो से यह उचित अभिमान उमका । चिर जियो, यो कह रहा है आज चित्त उदास मेरा, पर, चलित विश्वास मेरा। प्राथना है एक मेरे प्रति न होना, प्रिय, करुण तुम, ओर भर-भर मत बनाना मौदर लोचन द्वय अरण तुम, आज भी हैं बहुत प्यारे मुझे वे तब युगल लोचन, आज भो,-यद्यपि हुए वै अन्य के रस रग-रोचन, आज भी उन तारको स जटित आकाश मेरा, पर, चलित विश्वास मेरा। 1 भाल में मेरे लिखा है निपट सूनापन सनातन, सब अजव क्या, जो हुआ तव हृदय में यह अनमनापन ? बाधते निज ग्रोब मै क्यो तुम पुरातन अस्थि-माला' ठीक था। तुग ये न दुर्गा, शषित, तुम हो मनुज-याला अम्थि का तकाल मै, मज कर रहा उपहारा मेरा, चलित है विश्वास मेरा रेशपथ काशी से शनपुर २६ जनवरी १९४२ इम विषपायी जनमक