पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६५३

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कालानल उस गृह में दोप पर करता है, कालानिल व्यजन दुला, उस गृह को भरता है, काल-मेघ जल नित उस प्रागण मे झरता है, फाल अनल-अनिल-सलिल-उस ग्रह को सर्वनाम, ऐसा है मृत्यु-धाम । नैनी जेल, २४ अगश १९४१ कैसे निशि के सपने उड धाये नोड - थोर विहग - वृन्द फर - फर कर, चै-चुक-चुक के सुचारु रख से नभ थर-थर कर । घन-गन-सकुलित गगन कज्जल का पुज बना, माना नभ-याली में दृग अजन राधन सभा, अस्ताचल ओट हुआ दिन-मणि का रथ अपना जग को मोहित करने आया निशि का सपना, नभचारी गम-पथ से लौट चले अपने घर पखो से फरफर करें। साझा हुई, रानिवेतन पो गृह का सुध आयो, अनियेतन के हिय मे निशि की चिवा छायो, हम विषपामा जनमक