पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दिन-क्षण, विचरण ही में, बीत गये दुखदायो, अब यह वन्ध्या सन्ध्या श्रान्ति-समस्या लायो, पाये निशि-यास वहाँ यक्ति पथिक यह घर ? आया विश्राम - प्रहर 1 जव जीवन - रवि डूबा, भरण - तिमिर बढ आया,- जब कराल काल व्याल अधिकार नळ आया,- सब हिय यो पूछ उठा यह क्या मृण्मय माया यह कैसा परिवर्तन ? यह कैसी तम-छाया? अव निशि-आवास दान करे मौन करुणाकर? कंपता है हिय थर • थर । निशि का विधाम नहाँ? पूछा जब यो मन ने, ठोर कहा पूछा जब मो इस मृण्मय कण ने, बोली तब अमर साथ कैसे निशि के सपने? ऐ, रे। शालान किया तेरा, घिर चेतन ने। काले अवगुण्ठन में छिप आये है प्रियवर मत पर, रे अजर, अमर । आज, सौम तेरी यह नव प्रभात पूर्ण हुई, तुझ से अनिकेतन की चिन्ता सब चूण हुई, हुए आज द्वन्द दूर, आज दूर हुई दुई, मरघट के नभ से है आज अमिय फूही चुई, मत्यु का कराल कण्ठ गाता है जीवन स्वर अब कैसा भय 7 श्या डर श्री गणेश पुटीर, पानपूर २५ जुलाई १९४२ ? हम विपरायी जनम