पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६५७

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? मृत्यु-वन्ध मेरी जो अपूरन-सी जीवन फलिल भरी मरिता है, इसको क्या पूरन अरोगे तुम। इस तटिनी मे, इस सीमाबद्ध सरिणी में, पोलो, प्रिय, फैरी चिर जीवन भरोगे तुम यह नदी भूत और भावी के दुकूलो मे, लिपटी है, फैसे भौमा इराकी होगे तुम इस अनुमती, काल सीमिता तरगिणी मे, चेतन अशेष धन कैसे उतरोगे तुम? 2 2 मृत्यु का कराल अवरोध बाय बाये तुम, चेतन प्रयाह-गति सृति किये रुद्धमान,- जीवन का रचमात्र सलिल प्रदान कर, करते हो चेतन को कुण्ठित, अशुद्ध, क्या न चेतनावरोधकारी मृत्यु-बन्ध-कल्पना से- जीवन हुआ है अवरुद्ध, हतवुद्ध-ज्ञान, काई युग बीते, लोडो कब तो मरण बन्ध, मेरे प्रिय, प्राण, मेरे चिर भारामान ध्यान । जिस दिन मृत्यु को विभीपिका की इति भीति- गानव के हिम मे समूल हर जायेगी,- जिस दिन मृत्यु-जोपनवप की विचित्र इटा- मानव के हिम मे समुद्र भर जायेगी, हम विपपायर्या जनम ११