पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६५८

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पर-हित-अर्थ प्राण-अपण को इच्छा जब मानव के हिय को स्ववश कर पायेगो, तब मृत्यु बन्ध शैल-खण्ड खण्ड-खण्ड होगा, चेतन की सब धार झर-झर आयेगी। दर दो कि आज तो वृतान्त का गरल रूप किन्तु अमृतोपम, मरणासब सब प्याला यह, पीकर निहारूं विश्व मोहिनी तुम्हारी छटा, रोम-रोम रोझे, हाने हिम मतवाला यह, कैसा राकोच सोच कैसा? यदि तुम हो देते, अपने ही हाथो कटु मृत्यु रुप हाला यह । अमिय मिला के विष प्याले को भरा है खूब मृत्यु मधुपात्र में है जीवन की ज्वाला यह । गनी जेल, ९ अगस्त १९४१ जग मे महा मृत्यु की फाँसो जग मे महा मृत्यु को फांसी भरण खडा है चिर जीवन में डाले गलबहिया - ही गहरी महा मृत्यु को फासी। नाम स्प के भेद भरम ने जग मोहित कर डाला, लप - भव की अस्थिर महिला ने हिय मे भम भर डाला, हम विषपायो जनमक ६११