पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६५९

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किन्तु मानवोपरि मानव ने दिया संदेस निराला कि यह मरण तो है जीवन को अपनी कुछ महिमा -सो कैसी महा मृत्यु की फासी? गति मे अगति निहित है गति से अगति नहीं है भिन्ना, तब क्यों हो जीवन की गति से मृत्यु-अगत्ति विच्छिन्ना? जोवन-गति मे लख मरणागति,मति गति हो क्योखिन्ना? मरफर अमर संदेस दे गये वे जीयन सन्यासी कैसी महा मृत्यु की फासी? जीवन और विवाद होने वो पद-पद पर मरता है, मर मिटते है बीज, तभी तो क्षेत्र हरित भरता है, पुन और बढ़ने को पौवा पकापार, मर, झारता है, लव हम क्यो न कह कि मृत्यु है चिर जीयर गरिमा-सी' मी महा मृत्यु की फाँसी जीवन से रस राक्ता है अपनी प्रगति अगाधा ? निय विधि जडता में चेतन ने, बोलो, निज को बांधा। प्रगति, विकास,उत्तमण के बल उसने निज गो साधा, जोवन शम्भु महाकालेश्वर, मृत्यु प्रचण्ड उमा सो, सोभित डाले गलबहियाँ-सी जीवन को गोदी में जब तक मृत्यु - प्रिमा न विराजे, तक येसे राजन लास्य हो केंगे डमरवाजे? बंग नय चेतन - दान - aनि तब तक गूंज, गाज' जब तम चेतन पी ग्रोवा म हो न मरण शी गामी, एसो महा मृत्यु पो फामी। नारागार जुलाई 1 हम विषपायी अनम: