पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

? क्या तुम जाग रहे ही प्रहरी यया तुम जाग रहे हो प्रहरी आयी सांस, ढल चुकी है क्या तव जीवन को प्रखर दुपहरी क्या तुम जाग रहे हो, प्रहरी ? 7 क्यो जानू में सर्द साझ से सोऊंगा, तू कौन, बोल, री? जो कि रजातो आयो निवडक जागृति का घनघोर ढोल, रो। मेरे सालस निमिष-पात्र मे, मत जागृति का गरल घोल, रो सोऊ या जागं तुझको क्या जाग, जाग, मुझसे मत कह, री, मैं हूँ थकित, शिथिल-मन, प्रहरी 1 मै हूँ कौन ? पूछते हो तुम? मुझको देखा रच नयन-भर, मैं हूँ महामृत्यु । है मेरी लीलाएं अग्निद्र, शयन - हर । मै लायी हूँ तुम्ह चुभोने जागृति के ये शूल चयन कर, आज भग करने आयी हूँ जोवन को निद्रा गहरी, क्या तुम जाग रहे हो प्रहरी? सोते रहे दिवा निद्रा मे, खोलो अब तुम अपने लोचन, जागो ग्रहण करो यह मेरा शुभवर, जीवन-सकट-मोचन, आओ, में तब भाल देश पर कर अमृत-अजन-गोरोचन, जिसे साँझ वाहते हो, वह तो चिर चेतन - ऊषा बन छहरी, क्या तुम जाग रहे हो प्रहरी ? मेरा शुमागमन निश्चित है, मम ऑलगन है अदलावल, पर तुम मुझे मिलोगे फैसे निद्रित या विर जागृत पल-पल 7 हम विश्पायी जनमक ३६१