पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६६१

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यदि तुम जगते मिले मुझे, तो वरण करोगे मुझको अविकल । इसीलिए लहराती हूँ मे काल - सलिल पर जागृति - लहरी, क्या तुम जाग रहे हो प्रहरी ? जागे नील - काण्ठ जीवन म, कर विप-पान अमर बन आये, जागी शमित छिन्नमस्ता वह, जिनको निज शोणित-कण भाये, जामे दे बलिदानी जिनने नित प्राणापण मायन गाये, शिवि, दधीचि, नचिता जागे जिनकी सुयश-पताका फहरी । क्या तुम जाग रहे हो प्रहरी। नैनी जेल, १५ अगस्त १९४१ भाई, आज वजी शहनाई आज यजी शहनाई, भाई, आज वजो पहनाई, कित देह में कर्ण - न्न में गन्द्र-मद्र ध्वनि आयो । भाई, बाज यजो शहनाई । मगल-पट लै मृत्यु सटी है इस प्रमाण पौ बेला, ओ' अनतमै अंगम पथ मे छिटवा अगर उजेला, जोवन पे उपारण छोट र पेतन पला अथेला, महानि मा गो स्वर हरी मन - आंगन मै छायो, भाई, मान वजी गहनाई। हम विषपाया मनम (२२