पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६७३

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यह प्याला में पी न रागा यह प्याला मैपी न गांगा, हाज नही, हलाहल है यह,-से पान वार जी न सांगा प्रिय, यह प्पाला पोन सांगा। 1 ओडे श्याम चदरिया, माद रूप परे कुछ भोला-भाला, मदिर लोचनी से मुगलाते, बढ़ा रहे हो गयी यह प्याला? योलो, है पैसा मधया यह, नोला-नीला, काला-काला - इगयो पोपर तो मेरे प्रिय, में दो डग भी चल न सकूँगा। यह प्याला में गी न सकूँगा 1 यदि,मादक मधया के ही मिस देना है यह गरल हलाल,- तो फिर स्पष्ट पयो नही वाहते-यह छल क्यो ऐ मेरे निश्छल? तुम रसज्ञ पानी कर लाये प्राण-हरण-कारी-कालानल, पर, यह तव अतक मरणाराव मैं धोग्वे मे ही न छदूंगा। यह प्याला मै पीने सलूंगा 1 पर या अजब कि मरणासव मे घुला हुआ है चिर जीवन-रस । मुझे क्या पता किस-किस विधि से तुम प्रकटाते हा निज साहस? आसिर क्षण-भगुर जीवन से क्यों होते मैं मोहित बरबस ? शायद यह प्याला पोकर ही मै तुमको युट चौह सकूँगा। यह प्याला पयो पो न सांगा? दम चिपपायी मनमो