पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६७८

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सृजन के वृन्दाविपिन में राम रति मी रार, फाल-रविजा यो पुलिन पर देणु यो गुजार,- चौर-हर, सुख गोर-कर, के अतुल प्यार, दुलार- ये सभी प्रकटित हुए है नवा बारम्बार । तर यहाँ को वेदना ? केमा दुसा का भार । अविरल नेतना की धार । इन तरणि-तनया- तटो पर गूंजती है मन्द,- भौमुरी की ध्वनि, मधुर, मुद, प्राण-हर मुष-मन्द, घेणु जिसने सुनी, उसके प्राण - गायन -छद- तडप उट्टे, और, फिर कुछ हो गये निष्पन्द ध्वनि-विमुग्धा घर सफी काय प्राण का सम्भार ? अविरल नेतनापी धार। हो ग जब तक चेतना के श्याम पन का दान, कौन तब तक मृत्तिका की ग्वालिनो का मान ? दे, न दें नव चौर, तव सक, गया, कहो, परिवान? पट हरण कर ले न तब तवा क्या विमुक्ति-विधान ? पथ, जीवन-मरण की जग क्यों मचावे सर अविरल चेतना की धार? आज आ जाओ, बलाये , अहो सुकुमार पट-हरण करते पधारो, है असह यह भार, आ विराजो, फिर उसी चिर नीम पर छविसार, कर विवस्था सुरति विधुरा को करो स्वीकार । मरण - जीवन - मोह - बन्धन तोड दो इस वार, अविरल चेतना की धार नैनी जैल १६ अपटबर १९४१ 2 3 हम विपामी जनम