पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६७९

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सृजन झाँझ मिरजन शाप वजी हान-शन-शान, जड़-चेतन के तुमुल नगा गमक उठे धन-धन धन, सिरजन-माहा बजी शन-झन झन । ले दिक्-काल-दण्ड द्वय कर में कोई दुन्दुभि-वादक,- अगति, प्रगति, उद्गति को ध्वनियां [जा रहा उन्मादक, कापो जड-चेतन - दुन्दुभिया, घनन-घनन घनाई और अन्य कर द्वय डाकृत यह सृजन-झाल शनाई, ममृति विगी चतुर्भुज का है क्या केवल ध्वनि-बदन ? सिरजन-शाशवजी सान झन-हान । क्षण क्षण सृजन हरण की व्वनिया उठती हैं अम्बर मे, हैं एक ही प्रेरणा प्रलयकर में, विश्वम्भर मे, दुन्दुभि वादक की ध्वनियो मे भेद-भाव तो भ्रम है, सिरजन भी है हरण, हरण भी सिरजन का ही क्रम है। महा रुद्र का गजन ही तो है सूट का तजन झहत झाम बना है सिरजन । चेतन बी टकार पूण ध्वनि, जड़ वो पहर-गभीरा, दोनो पा कर रहे समन्वय कर-गत ज्ञाझ मजीरा, देकर ताल निहाल कर रहे लय-उद्भव को लीला, अणु-अणु मै है गणित चातुरी भरी हुई गति-शोला, हिय कम्पन, विद्युत्-कण शम्पन सब मे गणना विहरण, सिरजन-साँझ बजी झन-धन-सन । ६४० इम रियाय नम के