पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६८०

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गमनागमन, मरण जीवन यह, यह प्रलयोद्भव-लोला है सयोग मान यदि, तव क्या विथा ? कहा को पीडा ? हम वादन-ध्वनि मात्र अन्य को, यदि यह भी हम मान,- तो फिर क्या चिन्ता ? हम निज को वयो न माग पहचाने ? भी क्यो न बने उसके, हैं जिसके ये रज-कण-कण ? सिरजन-साँझ बजी क्षन-झन झा। नैनी जैन ९प्रावर १९४१ अपना हमरे साजन को अजय अदा हमरे साजन की अजर अदा, भोला-भाला जग पा जाने हमरे साजन है अलवेले, हमरे साजन हैं मस्ताने, सन्देश गढ़ाने को खखी है उनने इक दूती, सदेश लिये वह आती है जग - जन के नयनो यो छूती, वह आती है मम्तानी - सी पिय का आमन्त्रण लिये हुए, यो भूमती आती है मानो वह है कुछ पिये हुए। हम विचपायी जनग के ६४१ खूब ८ 9