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प्रिय वो दूतो पा नाम अजन, गिय यो दूती या पाग अजन, यह रहती है अधिराम मजग, हैं उमर मारे काम अजन, घनघोर वालिमा - सी वाली, पिय पी दूतो यह मतवालो, आती काल अंधियारे यी माडी पहने फाली - कालो, दूती रसना भाया हमरे मन • भावन को, इस लिए कहो तो भला दोष, क्या हैं हम अपने साजन फो? जिसको बहते है महामृत्यु वह टूती है हमरे पिय यो, वह छुपा-छुपाकर लाती है हम तय याते पिय के हिय का बाले अंबियाले की अपनी काली साडी मे छिपे हुए- आती समेटने प्राणो वे ताने-बाने जाने क्या कहती जाती है जीवन के उत्सुक श्रवणी में' मरणाजन देती जाती है जीवन के स्फारित नयनो में। बिछे हुए, ६१२ हम विषपायी जनम के