पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

केसा रादेश आती है जीवन की यह कृतान्त दूतो जो आती है बे - भरम यहा जन - गण के तन - मन को छूती, मन - स्मरण-प्राण - रावरणशोल सस्पश मान उसका प्रचण्ड,- क्षण - भर में ही कर देता है जीवन की धारा खण्ड-खण्ड, उसके पग दृग पर पडते ही हग रह जाते है मिचे हुए, मानो उसके चरणाकन को है पलक पावडे विछे पथ ने जो कहला भेजा है, वाहती जीवन के फानो मे, कहतो है "अब मत विलम और तू इस जग की मुसकानो में, जोवन, तू है जीवन या पर, जडता के बन्धन ही के बल, अन्यथा, अरे, तू चित्स्वरूप, चेतन सतत विशुद्ध, केवल, चेतन जीवन बनता है तब, जब होता जड़ से गठबन्धन, अन्यथा सतत वह है चिन्मय यदि हो जाता वा अतिलघन । हम पिपायी अनमक ६५३