पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६९

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पवन शून्य का आतुर निमन्त्रण, आज उसको मिल गया है, क्षितिज को निम्तीणता का, अचल हिल गया है प्राण पछी ने गगन में ललक कोतूहल विखेरा 1 स्वनित उड्डीयन ध्वनित - गति - जनित बनहद नाद से यह दिदिगन्ताकाश वक्षस्थल, है अहरह, ऊच गति ने ध्यान-मग्ना गीत यति को आन घेरा। उड चला इस सान्ध्य-नम मे मन -विहग तज निज बसेरा। सिरजन की ललकारे मेरी। धधना रहा है सब भूमण्डल, भूधर खौल रहे निशि-वासर, सरसे, आज शोलो की बारिश नभ से होती है झर-झर झर, घन गजन से भी प्रचण्डतर शनियों का गजन भीषण, - घपण रता है मानव हिय, जग मे मचा और समर्पण, ४६ हम निपपाधी जनमक