पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/७१

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नाश-शकट अपने चको से चूर-चूर करता है जन को, हिंसा की व्यालिनी उगलती है विप, फैलाये निज फन को। निविड और तिमिराच्छादित धन निशि में नर तज तग अपने घर बने निशाचर, रेंग रहे हैं, पेटो के बल शुका जुका सर, बन्दूक - भारतूसो से, किरचो-वमगोलो से, सज्जित, उनकी कर्तब्यता- नाश उनके हिय है रक्त निमज्जित, धनी रात कीचड धरती पर नभ से गिरती मूसलधारे फिर भी रेंग रही हैं, देखो द्विपद जन्तु की कई कतारे । बैठी है यह देखो, खन्दक मे सिकुडी- सिकुडाई पल्टन, धरती माता की छाती पर मृत्यु उगलती है मशीनगन, दिग्-दिग तवो पा रहा है तोपो के गोलो का मसे, खदको मै होता है मानवता का पूर्ण विसर्जन । गर्जन, VE हम विपपायी जनम के Aitam