पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/७२

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Hc तो धार्य-धार्य करती हैं मानव हाय, हाय, करता है रणचण्डी के भरे लबालन सम्पर से लोहू झरता है। क्षण-क्षण मे आकाश-याण ये तिमिर हटाते छूट रहे हैं, थल को शोणित-पशिल करते वम के गोले फूट रहे है। लो, मासूम नौजवानो के छिन में निथडे उड जाते हैं। लग जाते है ढेर दावो के गीदड भी न उन्हें साते है। खून-नरी यही कीमती खून फैलता है धरती पर, वही बना देता है कीचड धरती की मिट्टी में सनकर। का पख लगाये, चीर कलेजा नभ का, करती धघर-घधर-- वायुमान मिस मिस गुरतिी गुरतिो वह आयी मौत नरो के सर पर, एक घृणा से देख रहा है ऊपर से नीचे को सत्बर, और दूसरा भीति-शस्त हो, देख रहा नीचे से ऊपर, हम विपपायी जनम के १६