पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 यन्नारुढ हुए है दोनो, दोनो भाई-भाई फूट गयो दोनो के हिय की अपने हित की अयोकर जूझे? गोले बररो, वरसी आग, जहर भी बरसा, सन-रान करते, अरे मृत्यु को नम से भू तक छिन भी लगा न हाय, उतरते। मार-काट के राभी क्लबले- पल-भर मे काफूर हो गये, लिये भीति, विद्वेष हिये मे खन्दकयाले वीर सो गये, इतने ही मे गगनबिहारी भी सा गये चोट मोले की भू पर गिरे, उड गयो चिन्दी- चिन्दी उनके भी चौले की पर पर रको रक्त को लिप्मा। बढ़ती गयी बुझायो जितनो प्राण त्तिब्ध जग मे चढा-ऊपरी इतनी, युद्ध - भूमि की आग फैलती आती है गाना - गरी तक, ध्वस्त हो रहे हैं पहरो के गगनविचुम्बित उनत हम विषपानी जनम मन्तव,

$