पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

यदि इनका प्रकाशन भारतीम ज्ञानपीठरी हो तो नवीगजीको प्रसन्नता होगी। ज्ञानपीठचे लिए यह प्रस्ताय गौरवका था । वास्तवमें नवीनजी ने इन करितामाको छह विभिन्न संग्रहाके रूपमें नियोजित किया था और संग्रहाको बीपक स्वयं निश्चित किये थे १ सिरजनको ललकार, २ नवीन दोहावलो, ३ मौवन मदिरा, ४ प्रलयकर, ५ स्मरण-दीप, ६ मृत्यु घाम । व्हा लमहीका स्मूल रुप निश्चित कर दो बात, कविताका सवालन प्रारम्भ हया-पत्रोली मतरमा थोर पुरानो फाहलाको प्राप्ति, हस्तलिपियोको खोन, पत्र व्यवहार आदिम बहुत समय लगा। नवोपजीके सामने ही बहुत मदशामें मह कार्य पूरा हो गया था कि उनके निया के बाद भी प्रयल चलता रहा कि सग्रह अधिक से अधिक पूण हो। कई विश्वविद्यालयाके हिन्दो विभागाने डॉक्टरेटको थोसिरापे लिए, विद्यायियाको नवीनजीको काव्य विमा अध्ययनको स्पोति दी। भारतीय नपाउने शोधावियाको पापद्धलिपियाकै अध्ययनयी सुविधा दी तो सग्रहाको पूपता देनेरे साव भी पायै। सागर विश्य विद्यालय के प्राध्यापन श्री लक्ष्मी- नारायण दुवेने इस दिशाम विशेष प्रयत्न किया । 'ज्ञानपीठ पत्रिका में इन साकलनीर परिचगग हा गया है "सिरजन की सलवार को कविन एक सह दीपक 'यूपुर व स्वप्न भी दिया है । ये दोनो दोपक, रायहको प्रमुख और रामरो एम्मी परिवाना 'सिरजन को सलवार मेरों' और 'आये नूपुर के स्थन झन झन' की ओर शकेत करते है । "सिरजन की सरकार मेरी' लगभग ३० पृष्ठको कविता है जो महात्मा गाधी और उनके विचारो तथा हिसा अहिरागके दृद्ध आदिका प्रस्तुत देरती है। यह भय त धेगपूर्ण तथा चिवनपरय रचना ६ । 'माय नूपुर के स्थन झन झन' में शृगारका आध्यात्मीकरण ह । समय स्पर्म, यह सह नवीननोको दाशनिन बनायाका सकलग है। कवि भी लामिकसे अलौकिक्की आर उभुल हुदा है और करी अलौकियस लोरिकको आर आया है। 'नवीर दोहावली' क माध्यमसे नवीनीका एक ऐसा सामने आता है जो अभीतक हिदी-जगतको ज्ञात नही हो सपा हु। १९ शोको अत्तगत इस सगदी फुछ बडी बालीन, अधिवका ब्रजभापाने दोहे है। सग्रहका रचनाकाल १९३०-१९४६ है, और अधिकाश हग विपपायी जनमक 2 ५