पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/८२

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हम शोणित चैतरणी का भी करने को लगी हुई है इन प्राणो को वाजी, हम तो जुटे पड़े हैं। की यह और अहिंसा तत्व-दीपिका मत समझाओ, तुम छोडो यह नाद व्यथ का, चलो, चलें सग, तुम-हम आजओ, इस हिंसया साम्राज्यवाद के बडे-बडे तानाशाहो को- गरज रही है भोपण सोपे, वया निसात है वो आहो की? गर मानवता रोवो है तो रोये, क्या परवाह उन्हें है तुम हो कौन खेत की मूली? कोन तुम्हारी आह सुने है 7 ? हमसे तो तुम खूब कहोगे, जरा कही उनसे भी जा कर जरा देख लो क्या होता है, उन्हें अहिंसावाद सुना कर ? ये ये साबुपने को बातें, सुन कर मुंह फेरेंगे अपना, पा फिर अट्टहास सुन उनका होगा भग तुम्हारा सपना, हम रिपपापी बनम के