पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/८३

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पूण शान्ति-स देश जरा भी आज नहीं सुनने का यह जग, हिमामय है है जन-शोणित-षण, हिंसामय उनको नस रग-रग, जरा देर तुग खुद अपना हो हृदय चीर कर के गर देयो, तटस्थतामय वैज्ञानिक गति से तुम निरखो अपने को तो तुम देखोगे कि अहिंसा निपट पराजयवाद मार है यह तव नैतिक पाय हिरण्मय नेवल इक मृत्तिका पात्र है, आज अहिंसा तुम कहते हो, इसीलिए न कि विजित हुए हो? सूझी यह विधि, क्योकि पराजय- बाद-पक में निहित हुए हो। सचमुच बहना यदि तुम होते इस विशाल से गृह के स्वामी तब भी इसी अहिंसा के क्या तुग राचमुच बनते जनुगामी? तब तो राजदण्ड तुमको हिंसब बनना पडता, तुम आखें निकालते जग को, गर दह तुम मा पर पडता, हम पिपायी नमक धारण कर FE