पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/८४

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किन्तु पराजित हो, बस इरासे आज भनुत्तरदायो हो तुम, अत अहिंसा की मदिरा के आज बने मधु पापी हो. तुम, विचारो, आँखें खोल जरा तो देखो, पह नर गया है इसे फिर तुम यहाँ अहिंसा साधो, तब तुम पूण शान्ति-प्रत धारो, नर क्या है ? वेचल कुछ आदिम प्रबल भावनाओ की ढेरो, है नर को रुलान युग-युग से निम्न वासनाओ को चेरी, शोणित औ' मज्जासे लथपथ है नर के नख, चरण और रद, नर क्या है ? सोचो, नर तो है - काम, क्रोध, भय, लोभ, मोह, मद । वासना पुज इसी जीव को क्या तुम देव बनाने आये ? आज इसी के लिए कही क्या तुम यह शान्ति संदेसा लाये? मानव सदा रहेगा भानव, है प्रयास रात्र व्यर्थ तुम्हारा, नही समक्ष पायेगा कोई, है दुरह-सा अर्थ तुम्हारा, दम विषपायी जनमक