पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/९०

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कितने वरदानो को हमने मष्ट किया, पमा कभी विचारा? कितनी विधियाँ हम ले डूवे' साक्षी है इतिहास हमारा, जब तक वैयक्तिक-सामाजिक आचरणो में भेद रहेगा- जब तक व्यष्टि - समष्टि धम का सोत अलग से यहाँ रहेगा, अरे सत्य-शान्ति की सरणि जब तक न विश्व-व्यापिनी बनेगी,- जब तक न यह नदी छोटी, जग- प्लावक मन्दाकिनी नेगी,- जय तक बुद्धि और नैतिक बल गलबहियाँ डाले न चलेंगे,- तब तक ईति-भीतिके दानव मानवता को सतत खलेंगे। शोणित-भय युद्ध-प्रवृत्ति यह नैतिक पर्याय महावल,- आज खत के वासे जग के सम्मुख रखता है मै अविचल, है ब्रह्मास्त्र अहिंसा मेरी तेजाज बलशाली, गतिमय ऊर्ध्वगामिनी, क्लेदाहारिणी, वरदायिनी बनाती निमय, हम विषपायी जनमक