पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/९३

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तुम कहते हो । डाढ तौटना ही है केवल ध्येय हमारा, मैं कहता हूँ। लिप्ता जबडो का परिवतन श्रेय हमारा नीति-शास्त्रको न दो दुहाई वि शुभ ध्येय है साधन-पावन, ध्येय वही हो जाता है शुभ जिसमे जय रम जावे जन-मन, इधर क्रान्तिकारी कहते हैं अपने लक्ष्यो को जन-रजन, उधर घोर कहा स्पलक्ष्यो को दुख-भजन, दानो निज-निज लक्ष्यो को ही पावनता के अतुलित बल पर निज पाशविक कायशैली को बतलाते रहते है शुचितर, तानाशाही ने अन्तिम लक्ष्म बना देता है पतित साधनो को भी पायन? यह सिद्धात निपट मिथ्या है, न लें सहारा इसका जग जन, जो साधन नर के शोणित रो लयपथ, वे कब है धेयस्कर? आओ, जग-जन, आज त्यान दें मह सिद्धान्त, कुरूप, घृणाकर, हम विषपायी जनमक 30