पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/९४

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विप्लवफारी होना है विलय का अतिम तर्पण, विप्लव मे नवरस होता है, हिसा है पौराणिक चर्वण मा मत समझो में चिढा रहा हूँ यह कह कर मुंह आज तुम्हारा, मत समझो में समय रहा हूँ तुमको पापी हत्यारा, तुम हो प्रवल लोक-सग्राहक, तुम प्रचण्ड उनोधनकारी, तुमने दी हैं मागव के हित रक्ताजालियाँ न्यारी. न्यारी तुम तो मम समानधर्मा हो, सरफायेशी को टोली, तुम कब झिझके ? हाँ, तुमने कय कामरता को बोलो बोलो' उग्र तुम महान् स्वप्नो के द्रष्टा, तुम प्राणो के चौर सिलायो, तुमने अपने हुकारो से शोषकगण को छाती फाडी, इसीलिए तुगसे पाहता हूँ सुन लो वीर बांकुरे माई, बाज साधनो की अशुद्धता, देखो, हम कहाँ ले आयो? हम पिपपायी जनम के 59