पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/९६

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इसीलिए भोषण तोपो के गजन को न करो तैयारी भूल-भुलैया मे पड कर मत दिसलाओ अपनी लाचारी 2 क्या कहते हो कि मैं सुनाऊं तानाशाहो यो स्वर अपना खून जानता हूँ न सुनेंगे वे मुझ एकाकी का सपना, पर, तुम क्यो यो उपालम्भ यह सहधर्मों? मैं तो जग को आज बनाने विकला हूँ अपना विनिमुक्त रान्देश क्लेयाहर सुनें जिन्हे सुनना हो जो-भर, और उपेक्षा करें वे जिन्हे कपा रहा हो भव-भय थर-थर, सहकर्मो, को यह स्वप्न उपेदाामो से नही टूट सकता है यो हो, जगमोक्ष आनाक्षा कभी छूट समाती है यो ही? आज तुम्हे भी ऊँचती है बेकार, असम्भव ? पर, विकराल कान्तदर्शी में, मै गयो सुर्ने उपेक्षा की ग्य? हम विषपापी जनम के मेरी माह